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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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अध्याय 16  स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन

 

बम्बई कांग्रेस अधिवेशन के समय राष्ट्रवादियों (नेशनलिस्टों) का एक सम्मेलन पूना में हुआ, जिसमें 'होम रूल लीग' की स्थापना के सम्बन्ध मं  विचार विमर्श किया गया। तिलक ने इस प्रकार की संस्था की उपयोगिता पर बल देते हुए 'केसरी' में कई लेख लिखे। इसके पूर्व ही मद्रास में श्रीमती एनी बेसेन्ट ने इस प्रकार का प्रस्ताव रखा था, किन्तु नरम दलवालों के विरोध के कारण अपने बम्बई अधिवेशन में कांग्रेस ने उसे अनुमोदित नहीं किया, जिससे उनका प्रयास विफल रहा।

राष्ट्रवादियों (नेशनलिस्टों) ने, जो अभी तक कांग्रेस से बाहर थे, इस प्रकार के अनुमोदन की कोई आवश्यकता नहीं समझी। अतः पूना सम्मेलन की अनुकूल सिफारिशों के मुताबिक 28 अप्रैल, 1916 को बेलगांव में औपचारिक रूप से 'होम रूल लीग' की स्थापना कर दी गई, जिसका उद्देश्य ''ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत सारे वैधानिक तरीकों से स्वशासन प्राप्त करना और इस दिशा में जनमत तैयार करना था।'' लेकिन लीग का कर्ताधर्ता होने के बावजूद तिलक उसके कोई पदाधिकारी नहीं बने। जोसेफ बैप्टिस्टा, जिन्होंने लीग की स्थापना में प्रमुख भाग लिया था, इसके अध्यक्ष और नरसिंह चिंतामणि केलकर मन्त्री चुने गए। समिति के सदस्यों में गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे, डॉ० बालकृष्ण शिवराम मुंजे, आर० पी० करंदीकर और डी० व्ही. बेलवी थे।

अगले दिन बेलगांव में ही बम्बई प्रान्तीय सम्मेलन का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें मुख्यतः बम्बई कांग्रेस में राष्ट्रवादियों नेशनलिस्टों) के सम्मुख रखी गई समझौते की शतों पर ही विचार किया गया। यद्यपि तिलक इस समझौते की शर्तों से पूरी तरह सन्तुष्ट नहीं थे, फिर भी इन शर्तों को स्वीकार करने का उन्होंने अनुरोध किया। महात्मा गांधी ने भी, जो अपने को न तो नरम और न ही गरम दल का मानते थे, तिलक का समर्थन किया और यह प्रस्ताव सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया, जिससे कांग्रेस में राष्ट्रवादियों (नेशनलिस्टों) की वापसी का मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रान्तीय सम्मेलन के बाद तिलक का पहला काम होम रूल लीग के सदस्य बनाना और बम्बई, कर्नाटक तथा मध्य प्रान्त में उसकी शाखाएं स्थापित करना था। 'मराठा' में प्रकाशित एक लेख में उन्होंने लीग के उद्देश्यों को स्पष्ट किया-

''यह सभी मानते हैं कि ऐसी संस्था स्थापित करने का समय अब आ गया है, जो सारे देश में स्वशासन के लिए जनमत तैयार करके आन्दोलन करे। इतने बड़े उत्तरदायित्व को सम्हालने का अधिकार स्वभावतः कांग्रेस को ही था, किन्तु यह सभी मानते हैं कि कांग्रेस जैसी भारी भरकम संस्था को नए रास्ते पर मोड़ना और स्वशासन की योजना बनाकर उसके लिए आन्दोलन करने को तैयार करना अत्यंत ही कठिन कार्य है। अतः यह आरम्भिक कार्य तो वस्तुतः किसी और को ही करना होगा। इसे अब टाला नहीं जा सकता। इसलिए लीग को पथप्रदर्शक संगठन मानना चाहिए, कोई पृथक संगठन बनाने का प्रयत्न नहीं।''

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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